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कागा काको धन हरे, कोयल काको देय (अर्थ)

कागा काको धन हरे, कोयल काको देय ।

मीठे शब्द सुनाय के, जग अपनो कर लेय ।।

अर्थ: कागा किसका धन हरता है जिससे संसार उससे नाराज रहता है और क्या कोयल किसी को अपनी धुन देती है वह तो केवल अपनी मधुर (शब्द) ध्वनि सुनाकर संसार को मोहित कर लेती है ।

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कबीर सोता क्या करे, जागो जपो मुरार (अर्थ)

कबीर सोता क्या करे, जागो जपो मुरार ।

एक दिना है सोवना, लांबे पाँव पसार ।।

अर्थ: कबीर अपने को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे कबीर! तू सोने में समय क्यों नष्ट करता है । उठ तथा भगवान कृष्ण का स्मरण कर और अपने जीवन को सफल बना । एक दिन इस शरीर को त्याग कर तो सोना ही है । अर्थात इस संसार को छोड़ कर जाना ही है ।

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कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे बन माहिं (अर्थ)

कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे बन माहिं ।

ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहिं ।।

अर्थ: भगवान प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में विद्यमान है परंतु सांसारिक प्राणी उसे देख नहीं पाता है । जिस प्रकार मृग की नाभि में कस्तूरी रहती है |  परंतु वह उसे पाने के लिए इधर-उधर भागता है पर पा नहीं सकता और अंत में मर जाता है ।

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करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय (अर्थ)

करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय ।

बोया पेड़ बाबुल का, आम कहाँ से खाय ।।

अर्थ: कार्य को विचार कर करना चाहिए, जिस प्रकार बबूल का पेड़ बो कर आम खाने की इच्छा की जाय वह निष्फल रहेगी बगैर विचारे कार्य करके फिर पछचात्ताप नहीं करना चाहिए ।

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कहे कबीर देय तू, जब तक तेरी देह (अर्थ)

कहे कबीर देय तू, जब तक तेरी देह ।

देह खेह हो जाएगी, कौन कहेगा देह ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक तू जीवित है तब तक दान दिये जा । प्राण निकलने पर यह शरीर मिट्टी हो जाएगा तब इसको देह कौन कहेगा ।

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कबीरा लोहा एक है, गढ़ने में है फेर (अर्थ)

कबीरा लोहा एक है, गढ़ने में है फेर ।

ताही का बखतर बने, ताही की शमशेर ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि एक ही धातु लोहे को अनेक रूपों में गढ़कर अनेक वस्तुएं बना सकते हैं । जिस प्रकार तलवार तथा बखतर लोहे के ही बने होते हैं उसी प्रकार भगवान अनेको रूपों में प्राप्त है, परंतु वह एक ही है ।

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कबीर मन पंछी भया,भये ते बाहर जाय (अर्थ)

कबीर मन पंछी भया,भये ते बाहर जाय ।

जो जैसे संगति करै, सो तैसा फल पाय ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मेरा मन एक पक्षी के समान है, जिस प्रकार के वृक्ष पर बैठेगा वैसे ही फल का आस्वादन करेगा । इसलिए हे प्राणी, तू जिस प्रकार की संगति में रहेगा तेरा हृदय उसी प्रकार के कार्य करने की अनुमति देगा ।

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कहता तो बहूँना मिले, गहना मिला न कोय (अर्थ)

कहता तो बहूँना मिले, गहना मिला न कोय ।

सो कहता वह जाने दे, जो नहीं गहना कोय ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि इस संसार में आत्मज्ञान के उपदेशक तो बहुत मिले कि आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए यह करना चाहिए वह करना चाहिए आदि, परंतु उसको अपने अंदर अपनाने वाला कोई जीव नहीं मिला । उनके कहने पर स्नेह मात्र नहीं जो आत्मज्ञान के विवेकी नहीं हैं ।

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कुटिल बचन सबसे बुरा,जासे होत न हार (अर्थ)

कुटिल बचन सबसे बुरा,जासे होत न हार ।

साधु बचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ।।

अर्थ: कठोर वचन सबसे बुरी वस्तु है, यह मनुष्य के शरीर को जलाकर राख के समान कर देता है । सज्जनों के वचन जल के समान शीतल होते हैं । जिनको सुनकर अमृत की वर्षा हो जाती है ।

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कहा कियो हम आय कर, कहा करेंगे पाय (अर्थ)

कहा कियो हम आय कर, कहा करेंगे पाय ।

इनके भये न उतके, चाले मूल गवाय ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जीव के पैदा होने का कोई कारण उसको भी नहीं किया या अब समय उपस्थित है कि जीव को जाना है तो उसको पहले ईश्वर का स्मरण करने का कार्य वह भी नहीं किया । अब न तो इस संसार के ही रहे और न मोक्षप्राप्ति के अधिकारी ही हुए अब बीच में नरक में ही रह गए इसलिए प्राणी को हरि का स्मरण थोड़ा बहुत अवश्य करना चाहिए, सांसारिक झगड़ों में नहीं फंसना चाहिए ।

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