Categories
kabir ke dohe

कली खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय (अर्थ)

कली खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय ।

चाहे कहूँ सत आइना, सो जग बैरी होय ।

अर्थ: यह कलयुग खोटा है और सारा जग अंधा है मेरी बात कोई नहीं मानता, बल्कि जिसको भली बात बताया हूँ वह मेरा बैरी हो जाता है ।

Categories
kabir ke dohe

कबिरा यह तन जात है, सके तो ठौर लगा (अर्थ)

कबिरा यह तन जात है, सके तो ठौर लगा ।

कै सेवा कर साधु की, कै गोविंद गुनगा ।।

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं, यह जीवन (शरीर) दिन प्रति दिन जा रहा है, इसको संतों की सेवा और भगवान के स्मरण, भजन इत्यादि सही कामों में अभी ठौर लगा लो। 

Categories
kabir ke dohe

कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव (अर्थ)

कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव ।

क़हत कबीरा या जगत, नाहीं और उपाय ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि संसार रूपी भवसागर से पार उतरने के लिए कथा-कीर्तन की नाव चाहिए इसके सिवाय पार उतरने के लिए और कोई उपाय नहीं ।

Categories
kabir ke dohe

कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय (अर्थ)

कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय ।

आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि स्वयम को ठगना उचित है । किसी को ठगना नहीं चाहिए । अपने ठगने से सुख प्राप्त होता है और औरों को ठगने से अपने को दुख होता है ।

Categories
kabir ke dohe

कबिरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और (अर्थ)

कबिरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और ।

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि वे नर अन्धे हैं जो गुरु को भगवान से छोटा मानते हैं क्योंकि ईश्वर के रुष्ट होने पर एक गुरु का ही सहारा तो है लेकिन गुरु के नाराज़ होने के बाद कोई ठिकाना नहीं रहता ।

Categories
kabir ke dohe

कबिरा जपना काठ की, क्या दिखलावे मोय (अर्थ)

कबिरा जपना काठ की, क्या दिखलावे मोय ।

हिरदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि इस लकड़ी की माला से क्या होता है यह क्या असर दिखा सकती है अगर कुछ लेना और देखना हो तो मन से हरि सुमिरण कर, बेमन लागे जाप व्यर्थ है ।

Categories
kabir ke dohe

कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खारा खिन मीठ (अर्थ)

कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खारा खिन मीठ ।

काल्ह जो बैठा भंडपै, आज भसाने दीठ ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि यह संसार नाशवान है क्षण भर को कटु तथा क्षण भर को मधु प्रतीत होता है । जिस प्रकार कि कल कोई व्यक्ति मण्डप में बैठा हो और आज उसे शमशान देखना पड़े ।

Categories
kabir ke dohe

कबीर सीप समुद्र की, रटे पियास पियास (अर्थ)

कबीर सीप समुद्र की, रटे पियास पियास ।

और बूँदी को ना गहे, स्वाति बूँद की आस ।।

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि प्रत्येक प्राणी को ऐसी वस्तु ग्रहण करना चाहिए जो उसे उत्तम फल प्रदान करें; जिस प्रकार मोती उत्पन्न करने के लिए समुद्र की सीप पियासी-पियासी कह कर पुकारती है परंतु वह स्वाति जल के बूँद के अतिरिक्त और किसी का पानी नहीं ग्रहण करती है ।

Categories
kabir ke dohe

कबिरा मनहि गयंद है, आंकुश दै-दै राखि (अर्थ)

कबिरा मनहि गयंद है, आंकुश दै-दै राखि ।

विष की बेली परि हरै, अमृत को फल चाखि ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मन हाथी के समान है उसे अंकुश की मार से अपने कब्जे में रखना चाहिए इसका फल विष के प्याले को त्याग कर अमृत के फल के पाने के समान होता है ।

Categories
kabir ke dohe

कबीरा सोई पीर है, जो जा नै पर पीर (अर्थ)

कबीरा सोई पीर है, जो जा नै पर पीर ।

जो पर पीर न जानइ, सो काफिर के पीर ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि वही सच्चा पीर (साधु) है जो दूसरों की पीर (आपत्तियों) को भली प्रकार समझता है जो दूसरों की पीर को नहीं समझता वह बेपीर एवं काफिर होता है ।

Exit mobile version