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जबही नाम हृदय धरा, भया पाप का नास (अर्थ)

जबही नाम हृदय धरा, भया पाप का नास ।

मानो चिनगी आग की, परी पुरानी घास ।

अर्थ: जब भगवान का स्मरण मन से लिया जाता है तो जीव के सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं । जिस प्रकार एक चिनगारी अग्नि की पुरानी घास में गिर पड़े तो क्या होगा उससे सम्पूर्ण घास नष्ट हो जाती है । इसलिए पापों के विनाश हेतु भगवान का स्मरण मन से करना चाहिए ।

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जा कारण जग ढूंढिया, सो तो घट ही माहिं (अर्थ)

जा कारण जग ढूंढिया, सो तो घट ही माहिं ।

परदा कीया भरम का, ताते सूझे नाहिं ।।

अर्थ: जिस भगवान की तू संसार में खोज करता फिरता है वह तो हे जीव तेरे मन में व्याप्त हैं । भ्रम के पर्दे के कारण मुझे नहीं दिखाई देता इसलिए हे जीव, तू अपने मन के अज्ञान को नाश कर और ईश्वर के दर्शन कर । अर्थात बिना ज्ञान के हरि दर्शन नहीं हो सकता ।

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जल ज्यों प्यारा माछरी, लोभी प्यारा दाम (अर्थ)

जल ज्यों प्यारा माछरी, लोभी प्यारा दाम ।

माता प्यारा बालका, भक्तना प्यारा नाम ।।

अर्थ: जैसे जल मछ्ली के लिए प्यारा लगता है और धन लोभी को प्यारा है, माता को पुत्र प्यारा होता है । इसी प्रकार भगवान के भक्त को ईश्वर के नाम का स्मरण ही अच्छा लगता है ।

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जा घर गुरु की भक्ति नहि, संत नहीं समझना (अर्थ)

जा घर गुरु की भक्ति नहि, संत नहीं समझना ।

ता घर जाम डेरा दिया, जीवन भये मसाना ।।

अर्थ: जिस घर में ईश्वर तथा संतों के प्रति आदर-सत्कार नहीं किया जाता है, उस घर में यमराज का निवास रहता है तथा वह घर श्मशान के सदृश है, गृहस्थी का भवन नहीं है ।

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जागन में सोवन करे, सोवन में लौ लाय (अर्थ)

जागन में सोवन करे, सोवन में लौ लाय ।

सूरत डोर लागी रहै, तार टूट नहिं जाय ।।

अर्थ: मनुष्य को चाहिए कि उसके मन में जागृत अवस्था में तथा निद्रित अवस्था में हरि के प्रति भक्ति की चाहना होती रहे और हरि के स्मरण का ध्यान कभी नष्ट न हो ।

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जा पल दरसन साधु का, ता पल की बलिहारी (अर्थ)

जा पल दरसन साधु का, ता पल की बलिहारी ।

राम नाम रसना बसे, लिजै जनम सुधारि ।।

अर्थ: जिस घड़ी साधु का दर्शन हो उसे श्रेष्ठ समझना चाहिए । और रामनाम को रटते हुए अपना जन्म सुधारना चाहिए ।

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ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग (अर्थ)

ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग ।

तेरा सांई तुझी में, जागि सकै तो जाग ।।

अर्थ: जिस तरह तिल्ली के अंदर तेल तथा चकमक में अग्नि है फिर भी जो युक्ति से प्राप्त होते हैं यद्धपि वह अंदर ही विराजमान है, उसी प्रकार परमात्मा भी तेरे भीतर स्थित है, यदि तू उसके दर्शन का अभिलाषी है तो अपने ज्ञानचक्षुओं को खोलकर दर्शन कर बगैर ज्ञानचक्षु के परमात्मा के दर्शन नहीं कर सकता है ।

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चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय (अर्थ)

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय ।

दुइ पट भीतर आइके, साबित बचा न कोय ।।

अर्थ: चलती हुई चक्की को देखकर कबीर रोने लगे कि दोनों पाटों के बीच में आकर कोई भी दाना साबुत नहीं बचा अर्थात इस संसार रूपी चक्की से निकलकर कोई भी प्राणी अभी तक निष्कलंक (पापरहित) नहीं गया है ।

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छीर रूप सतनाम है, नीर रूप व्यवहार (अर्थ)

छीर रूप सतनाम है, नीर रूप व्यवहार ।

हंस रूप कोई साधु है, तत का छानन हार ।।

अर्थ: भगवान राम का नाम दूध के समान है और सांसरिक व्यवहार पानी के समान निस्सार वस्तु है । हंस रूप साधु होता है, जो तत्व वस्तु भगवान को छांट लेता है ।

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छिन ही चढ़े छिन उतरे, सो तो प्रेम न होय (अर्थ)

छिन ही चढ़े छिन उतरे, सो तो प्रेम न होय ।

अघट प्रेम पिंजरे बसे, प्रेम कहाबै सो ।।

अर्थ: जो प्रेम क्षण-क्षण में घटता तथा बढ़ता रहता है वह प्रेम नहीं है । प्रेम तो वह है जो हमेशा एक सा रहे । भगवान का प्रेम अघट प्रेम है जो मनुष्य की सम्पूर्ण इंद्रियों से प्रदर्शित होता रहता है ।

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