kabir ke dohe
-
गारी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट और भींच (अर्थ)
गारी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट और भींच । हारि चले सो साधु हैं, लागि…
-
घी के तो दर्शन भले, खाना भला न तेल (अर्थ)
घी के तो दर्शन भले, खाना भला न तेल । दाना तो दुश्मन भला, मूरख…
-
घाट का परदा खोलकर, सन्मुख ले दीदार (अर्थ)
घाट का परदा खोलकर, सन्मुख ले दीदार । बाल सनेही साइयां, आवा अंत का यार…
-
चन्दन जैसा साधु है, सर्पहि सम संसार (अर्थ)
चन्दन जैसा साधु है, सर्पहि सम संसार । वाके अङ्ग लपटा रहे, मन मे नाहिं…
-
खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे को दल माँह (arth)
खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे को दल माँह । आशा जीवन मरण की, मन में…
-
गाँठि न थामहिं बाँध ही, नहिं नारी सो नेह (अर्थ)
गाँठि न थामहिं बाँध ही, नहिं नारी सो नेह । कह कबीर वा साधु की,…
-
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाँय (अर्थ)
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाँय । बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय ।।…
-
गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव (अर्थ)
गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव । कहे कबीर बैकुंठ से, फेर दिया…
-
कांचे भाड़े से रहे, ज्यों कुम्हार का नेह (अर्थ)
कांचे भाड़े से रहे, ज्यों कुम्हार का नेह । अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहिं…
-
केतन दिन ऐसे गए, अन रुचे का नेह (अर्थ)
केतन दिन ऐसे गए, अन रुचे का नेह । अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहिं…
About Author
Alex Lorel
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua veniam.