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एक ते जान अनंत, अन्य एक हो आय (अर्थ)

एक ते जान अनंत, अन्य एक हो आय ।

एक से परचे भया, एक बाहे समाय ।।

अर्थ: एक से बहुत हो गए और फिर सब एक हो जाओगे जब तुम सब भगवान को जान लोगे तो तुम भी एक ही में मिल जाओगे ।

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कबीरा संगति साधु की, हरे और की व्याधि (अर्थ)

कबीरा संगति साधु की, हरे और की व्याधि ।

संगति बुरी असाधु की, आठो पहर उपाधि ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि साधु की संगति ही भली है जिससे कि दूसरे की आपत्ति मिट जाती है । असाधु कि संगति बहुत खराब है, जिससे कि आठों पहर उपाधियां घेरे रहती हैं ।

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कबीरा संगति साधु की, जौ की भूसी खाय (अर्थ)

कबीरा संगति साधु की, जौ की भूसी खाय ।

खरी खाँड़ भोजन मिले, ताकर संग न जाय ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि साधु की संगति में जौ कि भूसी खाकर रहना उत्तम है, परंतु दुष्ट की संगति में खांड़ मिश्रित खीर खाकर भी रहना अच्छा नहीं ।

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कबीरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की वास (अर्थ)

कबीरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की वास ।

जो कुछ गंधी दे नहीं, तो भी बास सुवास ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि साधु की संगति गंधी की वास की भाँति है, यद्द्पि गंधी प्रत्यक्ष में कुछ नहीं देता है तो भी उसके इत्रों की सुगंधी से मन को अत्यंत प्रसन्नता मिलती है । इसी प्रकार साधु संगति से प्रत्यक्ष लाभ न होता हो तो भी मन को अत्यंत प्रसन्नता और शांति तो मिलती है ।

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ऊँचे पानी न टिके, नीचे ही ठहराय (अर्थ)

ऊँचे पानी न टिके, नीचे ही ठहराय ।

नीचा हो सो भरिए पिए, ऊँचा प्यासा जाय ।।

अर्थ: पानी ऊँचे पर नहीं ठहरता है, इसलिए नीचे झुकने वाला पानी पी सकता है । ऊँचा खड़ा रहने वाला प्यासा ही रह जाता है अर्थात नम्रता से सब कुछ प्राप्त होता है ।

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ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊंच न होय (अर्थ)

 ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊंच न होय ।

  सुबरन कालस सुरा भरा, साधु निन्दा सोय ।।

अर्थ: अगर उच्च कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति अच्छे कर्म नहीं करेगा तो वह वैसे ही है जिस प्रकार कि साधु के सोने के कलश में शराब भरी हुई हो। वैसे ही यह निंदा की बात है ।

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ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय (अर्थ)

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय ।

औरन को शीतल करे, आपौ शीतल होय ।।

अर्थ: मन से घमंड को बिसार कर ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो दूसरों को शीतल करे और मनुष्य आप भी शांत हो जाये ।

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एक कहूँ तो है नहीं, दूजा कहूँ तो गार (अर्थ)

एक कहूँ तो है नहीं, दूजा कहूँ तो गार ।

है जैसा तैसा रहे, रहे कबीर विचार ।।

अर्थ: कबीर कहते हैं यदि मैं ईश्वर को एक कहूँ तो यह भी सही नहीं हो सकता हैं क्योंकि ईश्वर हर जगह सर्वत्र विद्यमान हैं. यदि मैं दो कहूँ तो यह बुराई करने के समान होगा. इसीलिए मैं कबीर कहता हूँ जैसे आप हैं वैसे ही बने रहिये

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अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक होय (अर्थ)

अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक होय ।

मानुष से पशुया भया, दाम गाँठ से खोय ।।

अर्थ: तुमसे शराब की बुराई करता हूँ कि शराब पीकर आप पागल होते है मूर्ख और जानवर बनते है और जेब से रकम भी लगती है ।

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उतने कोई न आवई, पासू पूछूँ धाय (अर्थ)

उतने कोई न आवई, पासू पूछूँ धाय ।

इतने ही सब जात है, भार लदाय लदाय ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि कोई भी जीव स्वर्ग से नहीं आता है कि वहाँ का कोई हाल मालूम हो सके, किन्तु यहाँ से जो जीव जाया करते हैं वे दुष्कर्मों के पोटरे बाँध के ले जाते हैं ।

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