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उज्ज्वल पहरे कापड़ा, पान-सुपारी खाय (अर्थ)

उज्ज्वल पहरे कापड़ा, पान-सुपारी खाय ।

एक हरि के नाम बिन, बाँधा यमपुर जाय ।।

अर्थ: उजले कपड़े पहनता है और पाण-सुपारी खाकर अपने तन को मैला नहीं होने देता। इतना करने के बाद भी अगर तू हरी गुण नहीं गाता तो नर्क ही मिलता है ।

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आया था किस काम को, तू सोया चादर तान (अर्थ)

आया था किस काम को, तू सोया चादर तान ।

सूरत संभाल ए काफिला, अपना आप पहचान ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि प्राणी तू यहाँ मनुष्य योनि में जन्म लेकर भगवान भजन के लिए आया था । परंतु सांसारिक मोह, वासनों में फँस कर उसको भूल गया है इसलिए तू अपने को पहचान कर अर्थात अज्ञान व मोह, वासनाओं का त्याग कर मान प्राप्त करके ईश्वर का स्मरण कर ।

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आशा को ईंधन करो, मनशर करा न भूत (अर्थ)

आशा को ईंधन करो, मनशर करा न भूत ।

जोगी फेरी यों फिरो, तब बुन आवे सूत ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि सच्चा योगी बनना है तो मोह वासनाओं तथा तृष्णा को फूँक कर नाश कर दो फिर हे प्राणी, तुम्हारे अंदर आत्मा का विकास होगा ।

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आग जो लागी समुद्र में, धुआँ न प्रगटित होय (arth)

आग जो लागी समुद्र में, धुआँ न प्रगटित होय ।

सो जाने जो जरमुआ, जाकी लाई होय ।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि आग प्रायः धुआँ से जानी जाती है किन्तु जब प्रभु प्रेम की अग्नि किसी के मन में उत्पन्न हो जाती है तो उसको दूसरा कोई नहीं जानता है । उसके ज्ञान को भुक्तभोगी के सिवा अन्य कोई नहीं जान सकता है ।

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आए हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर (अर्थ)

आए हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर ।

एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बाँधि जंजीर ।।

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जो प्राणी इस संसार में जन्म ग्रहण करेगा वह अवश्य मरेगा चाहे वो गरीब हो अथवा अमीर । प्राणी अपने कर्मानुसार सिंहासन पर बैठता है तथा दूसरा जंजीरों में बंधकर जाता है ।

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आहार करे मनभावता, इंद्री की स्वाद (अर्थ)

आहार करे मनभावता, इंद्री की स्वाद ।

नाक तलक पूरन भरे, तो कहिए कौन प्रसाद ।।

अर्थ: जो मनुष्य इंद्रियों के स्वाद के लिए पूर्ण नाक तक भरकर खाय तो प्रसाद कहा रहा !

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आवत गारी एक है, उलटन होय अनेक (अर्थ)

आवत गारी एक है, उलटन होय अनेक ।

कह कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक ।।

अर्थ: गाली आते हुए एक होती है परंतु उलटने पर बहुत हो जाती है । कबीरदास जी कहते हैं कि गाली के बदले में अगर उलट कर गाली न दोगे तो एक-की-एक ही रहेगी ।

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आस पराई राखता, खाया घर का खेत (अर्थ)

आस पराई राखता, खाया घर का खेत ।

औरन को पथ बोधता, मुख में डारे रेत ।।

अर्थ: तू दूसरों की रखवाली करता है अपनी नहीं यानि तू दूसरों को ज्ञान सिखाता है और स्वयं क्यों नहीं परमात्मा का भजन करता है ।

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अपने-अपने साख की, सब ही लिनी भान (अर्थ)

अपने-अपने साख की, सब ही लिनी भान ।

हरि की बात दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान ।।

अर्थ: हरि का भेद पाना बहुत कठिन है पूर्णतया कोई भी न पा सका । बस जिसने यह जान लिया कि मैं सब कुछ जानता हूँ मेरे बराबर अब इस संसार में कौन है, इसी घमंड में होकर वास्तविकता से प्रत्येक वंचित ही रह गया ।

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अन्तरयामी एक तुम, आतम के आधार | कबीर के दोहे

अन्तरयामी एक तुम, आतम के आधार ।

जो तुम छोड़ो हाथ तौ, कौन उतारे पार ।।

अर्थ: हे प्रभु ! आप हृदय के भावों को जानने वाले तथा आत्मा के आधार हो । यदि आपकी आराधना न करें तो हमको इस संसार-सागर से आपके सिवाय कौन पार उतारने वाला है ।

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